जब भारत ने खत्म किया कंगारूओं का वर्चस्व , प्रभाव और उनका घमंड और अपराजित से पराजित होने की कहानी....🤓

 जब भारत ने खत्म किया कंगारूओं का वर्चस्व , प्रभाव और उनका घमंड और अपराजित से पराजित होने की कहानी....🤓


ये कहानी है उस दौर का जब कंगारूओं का वर्चस्व पूरे धरती पर था। उनका पराक्रम कुछ इस कदर था कि जैसे उनके सामने कोई भी टीम टिक नहीं सकती थी और यही चीज उनके साहस को बढ़ा रहा था। ऑस्ट्रेलिया एक ऐसी टीम जो पिछले तीन साल से लगता वर्ल्डकप कि वो ट्रॉफी अपने नाम करते आ रही थी कंगारू के ये आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि उस समय पर पूरी दुनिया में उनके जैसा पराक्रम क्रिकेट के मैदान पर ना कभी कोई था और ना कभी हो पाएगा। साल 2011 एक और वर्ल्डअप का साल और इस साल भी चार बार की विश्व विजेता टीम ऑस्ट्रेलिया भी इसमें भाग ले रही थी वो भी एक ऐसे कैप्टन की आगुवाई में जिसके कप्तानी में कंगारू ने कभी भी असफलता प्राप्त नहीं की थी। जी हा उस कप्तान का नाम रिकी पोंटिंग था। एक ऐसा कप्तान जिसकी आगुवाई में ऑस्ट्रेलिया की टीम पिछले 24 मैच से सफलता प्राप्त की थी। एक ऐसा कप्तान जिसकी अगुआई में ऑस्ट्रेलिया ने लगतार 2 बार वर्ल्डकप अपने नाम किया था और दुनिया को अपने सामने झुकाया था। कुछ ऐसी ही स्थिति में इस बार ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग की निगाहें इस बार भी 2011 के विश्व कप की ट्रॉफी पर टिकी हुई थी। ऑस्ट्रेलिया के कप्तान रिकी पोंटिंग आईसीसी ट्रॉफी से महक 2 कदम की ही दूरी पर था लेकिन उसे कहा पता था कि इस बार उसका सामना धोनी के धुरंधर से होने वाला है। विश्वकप के इस साल में जहां ऑस्ट्रेलिया टीम क्वार्टर फाइनल में प्रवेश करती है तो उनका समन धोनी के धुरंधरों से पड़ता है


एक ऐसे कप्तान का सामना एक ऐसे कप्तान से होने वाला था जिसकी चतुराई के सामने अच्छे अच्छे भी पानी भरते नजर आते हैं. जिसने सिर्फ अपनी चतुराई के दम पर 2007 के विश्व कप की ट्रॉफी अपने नाम की थी। 


24 मार्च 2011 ........👉


ये बात है विश्वकप 2011 की और तारीख है 24 मार्च 2011। अहमदाबाद का वो मोटेरा ग्राउंड इस दिन होने वाली तबाही का और यहा बनने वाले नए रिकॉर्ड की गवाही देने के लिए सज्ज था।आज के दिन या तो ऑस्ट्रेलिया के लिए अपराजित कप्तान रिक्की पोंटिंग को असफलता मिलने वाली थी या वो अपना अपराजित होने का सिलसिला जारी रखने वाली था।

जहां एक तरफ भारत के पास होम एडवांटेज था तो दूसरी तरफ कांगारू को किसी भी फायदे की जरूरत नहीं थी। वो जहां भी खेलते हैं उसी मैदान को अपना होम ग्राउंड बना लेते और पिछले 3 साल विश्वकप के ये आंकड़े ये बताते हैं कि उन्हें किसी के होम एडवांटेज की परवाह नहीं थी। उन्हें ये आंकड़े बताते हैं कि घर किसी का हो लेकिन हुकूमत तो हम ही करेंगे।

  धोनी के धुरंधरों के पास ये साल उन्हें ये मौका देता है कि 2003 में मिली हार का वो बदला ले सके और कंगारूओ के उस घमंड को तोड़ सके....। अहमदाबाद का मोटेरा ग्राउंड उस दिन होने वाले तबाही की गवाही देने के लिए तैयार बैठा था।

  बात है 24 मार्च 2011 कि जिस दिन कंगारूओ के अपराजित होने का सिलसिला खत्म हुआ था और भारत ने पूरे विश्वअप में अपना लोहा मनवाया था। 

  नमस्कार दोस्तों ये कहानी है 24 मार्च 2011 के क्वार्टर फाइनल के उस मैच की जहां आमने सामने थे भारत और ऑस्ट्रेलिया। जहां एक साइड थी दिग्गजो से भरी टीम यानी की टीम ऑस्ट्रेलिया और दूसरी टीम थी धोनी की नई नवेली टीम। जहां एक तरफ थे तेज रफ्तार वाले गेंदबाज और निडर, किसी से न डरने वाले और किसी भी बॉलिंग अटैक को धूल चटाने की क्षमता रखने वाले बल्लेबाज़। तो दूसरी तरफ धोनी के पास नई नवेली तैयार की हुई टीम जिसमें कुछ के पास अनुभव और विश्व का सबसे अच्छा बल्लेबाज़, खिलाड़ी होना का नाम था। जहां एक तरफ 1983 से कोई भी वर्ल्डकप ना जितने का कलंक था तो दूसरी तरफ का घमंड जो पिछले... 2 विश्वकप लगतार जीत कर आई थी।


 सिक्का उछाला जाता है और सिक्का गिरता है टीम ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में और टीम ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाज़ी करने का फैसला लेती है।टीम ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ी का फैसला लेते ही भारत के जाखमो पर नमक लग जाता है क्यू की ऐसा कहा जाता है कि ऑस्ट्रेलिया के सामने भारत पिछले 6 मैच रन चेज करने में असफल रही है और जब भी भारत कंगारूओं के सामने रन का पीछे करने उतरी थी हमेसा भारत की शर्मनाक हार हुई थी। रनो का पीछा करते हुए टीम इंडिया कभी भी कंगारू को पराजित नहीं कर पाई थी इसी बात को लेकर टीम ऑस्ट्रेलिया का घमंड सातवे आसमान पर था। कुछ ऐसे ही हाल में लिखी जाती है कंगारू के हार की वो कहानी। उनके अपराजित होने से लेकर पराजित होने तक की कहानी।


मैच का दिन......👉

कंगारुओं की तरफ से ऑस्ट्रेलिया की पारी की शुरुआत करने आते हैं वॉटसन और हैडिन जैसा कि हमेशा से होता आ रहा है उसी तरह इस बार भी कंगारूओं की शुरुआत शानदार होती है लेकिन वॉटसन जायदा देर तक मैदान पर टिक नहीं पाते हैं और वाटसन के आउट होते ही मैदान पर उतरता है एक ऐसा कैप्टन जो लगातार 3 विश्वकप में सारे मैच जीतते हुए आ रहा है यानी की खुद रिकी पोंटिंग एक ऐसा कप्तान जो अकेले दम पर मैच जिताने का हुनर रखता था लेकिन इस वर्ल्ड कप में उसका बल्ला ऐसे शांत था जैसे की कोई नई नवेली दुल्हन। वर्ल्डकप में रिकी पोंटिंग केवल 20 की औसत से ही रन बना रहा था जो कि टीम इंडिया को एक खुशी प्रदान कर रहा था।

  शायद टीम इंडिया की ये बहुत बड़ी गलती थी कि उन्हें रिक्की पोंटिंग की इस खामोशी और बल्ला से ना निकले रन को उसका बुरा वक्त समझ लिया था। जहां पूरे विश्व कप में रिक्की पोंटिंग का बल्ला खामोश था वही क्वार्टरफाइनल के मैच में उसका बल्ला ऐसे चला जैसे वो इसी दिन के इंतजार में बैठा था। जहां एक तरफ से लगातार ऑस्ट्रेलिया के विकेट गिर रहे तो दूसरी तरफ से रिक्की पोंटिंग अकेले ही टीम ऑस्ट्रेलिया को अच्छे स्कोर की तरफ ले जा रहा था। रिक्की पोंटिंग उस मैच कुछ ऐसे खेल रहा था मानो कि वो उसका आखिरी मैच हो। उसका बस एक ही लक्ष्य है कि अपनी टीम को उस स्कोर तक ले जाना था जहां से उसके गेंदबाज इस रन चेज के सामने एक दीवार की तरह खड़े हो सके और देखते ही देखते ऑस्ट्रेलिया के कप्तान का शतक आ जाता है।

  ऑस्ट्रेलिया की टीम रिक्की पोंटिंग के इस नॉक की वजह से एक सम्मान स्कोर तक पहुंच चुके थे ये रहा उनका मैच का स्कोरकार्ड।


शेन वाटसन :- 25(38) 

ब्रैड हैडिन :- 53(62)

रिकी पोंटिंग :- 104(118)

माइकल क्लार्क :- 8(19)

माइकल हसी :- 3(9)

कैमरन व्हाइट :- 12(22)

डेविड हसी :- 38(26)

मिशेल जॉनसन :- 6(6)

अतिरिक्त रन :- 11


  अब टीम इंडिया को 260 रन का पीछे करना था जो की टीम इंडिया के लिए एक आसान सा लक्ष्य था लेकिन दूसरी टीम के खिलाफ ना की ऑस्ट्रेलिया की इस तेज गेंदबाजी आक्रमण के सामने, किसी दूसरी टीम के सामने ये रन चेज आसान होता लेकिन ऑस्ट्रेलिया के सामने नहीं। ये 260 रन ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजो के सामने किसी 300 रन से कम नहीं थे। भारत को ये मैच जीतने के लिए 261 रन बनाने थे। अहमदाबाद के इस मोटेरा के मैदान पर तो टीम इंडिया के गेंदबाजो ने अपना काम कर दिया था अब बारी थी भारत के बल्लेबाजों की। 

भारत की तरफ से पारी की शुरआत करने आते हैं सचिन और सहवाग। टीम इंडिया की शुरुआत इस मैच में अच्छी नहीं होती है और भारत ने 44 रन पर अपना पहला विकेट सहवाग के रूप में खो दिया था। सहवाग के विकेट गिरने के बाद सचिन और गंभीर मिलकर टीम इंडिया को संभालते हैं लेकिन शॉन टेट की उस गेंद पर क्रिकेट के भगवान का विकेट गिर जाता है और मोटेरा के इस मैदान पर एकदम खामोशी छा जाती है। भारत के दोनों सलामी बल्लेबाजों के विकेट गिरने के बाद भारत के एक के बाद एक विकेट गिर रहे थे। गंभीर और कोहली भी टीम इंडिया का साथ ज्यादा देर तक नही दे पाते हैं और अपना अपना विकेट गंवा बैठते है। टीम इंडिया का अब तक का स्कोर 168-4 था।

अब भारतीय टीम को 101 गेंदो पर केवल 93 रन की जरूरत थी। ये लक्ष्य टीम इंडिया के लिए असंभव नहीं था लेकिन कंगारू गेंदबाजो के सामने आसान नहीं था। ऐसी स्थिति में एक बार फिर मैदान में टीम इंडिया के कप्तान धोनी और दूसरी तरफ भारत का संकटमोचन युवराज सिंह लेकिन 187 के स्कोर पर भारत ने अपने कप्तान धोनी का भी विकेट गंवा दिया।ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज ने भारत के कप्तान का शिकार किया था और भारत की आधी टीम वापस पवेलिन जा चुकी थी। अब भारत के ऊपर संकट के बदल घूम रहे हैं जो लक्ष्य आसान दिख रहा था अब उसी लक्ष्य को पाने में टीम इंडिया को बहुत मुश्किल हो रही थी।अब इस मैच को जिताने की जिम्मेदारी थी 2 कंधो पर जहां एक तरफ थे युवराज सिंह तो दूसरी तरफ थे सुरेश रैना। अगर ये दोनों मैदान पर रह गए तो ये मैच को जीता देंगे और टीम इंडिया का विश्वकप का सफर जारी रहेगा और अगर ये दोनों भी बाहर होते हैं तो भारत का विश्वकप का सपना एक सपना ही बन कर रह जाएगा। अब ना भारत के पास क्रिकेट का भगवान था और ना ही भारत का कप्तान धोनी अब तो बास मैदान पर युवराज सिंह जिनहे भारत का संकटमोचक कहा जाने लगा था और दूसरी तरफ सुरेश रैना। ऐसे हाल ऐसे हालात में युवराज ने पहले टीम इंडिया को संभला और रैना ने तेज गेंदबाजो पर आक्रमण किया। दोनो अपनी तरह की ही क्रिकेट खेल रहे एक टीम को संभाल रहा था तो दूसरा गेंदबाजो की पिटाई का कर रहा था। देखते ही देखते दोनो ने पहले 50 रन की साझेदारी की उसके बाद युवराज ने अपने 50 रन पूरे किए। ऐसी स्थिति में कंगारुओं का वो टूटना उनके चेहरे पर ही दिख रहा था कि अब केवल औचारिकता ही बची हुई थी। रैना और युवराज ने ऐसे बल्लेबाजी का नजारा दिखाया कि ऑस्ट्रेलिया के सामने उनके किसी भी शॉट का जवाब नहीं था। युवराज और रैना का शॉर्ट कंगारू के द्वारा दिए गए जखमो का बदला ले रहे थे और उनका घमंड तोड़ रहे थे जो 2003 के वर्ल्डकप में कंगारू ने भारत को दिए थे। युवराज का फाइनल शॉट के बाद कंगारू का वो हारा हुआ चेहरा देखने लायक था। उनका घमंड अब टूट चुका था। उनका वो अपराजित होने का सिलसिला खत्म हो चूका था। कंगारू अब पराजित हो चुके उनका लगता तीसरी बार विश्वकप जितने का सपना एक सपना ही बन कर रह जाता है। इस विनिंग के बाद टीम इंडिया के सर से वो कलंक हट जाता है जो पिछले 6 बड़े मैचो से उन पर था। लोगो के चेहरे पर वो खुशी थी जो 2003 के उस मैच के बाद से लोगो के चेहरे से गायब थी। इस जीत के बाद टीम इंडिया अब सेमीफाइनल में जा चुकी थी जहां उनका मुकाबला पाकिस्तान से होना था।



धन्यवाद दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आपको ये कहानी पढ़ कर बहुत ही अच्छा होगा और मेरी तरह ही आप भी 2011 के उस दिन में चले गए होंगे जिस दिन ये क्वार्टरफाइनल का ये मैच था यानी की 24 मार्च 2011.......😊

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