जगन्नाथ पुरी मन्दिर (Jagannath Puri Temple) जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) जगन्नाथ मन्दिर का इतिहास (History of Jagannath Temple)
जगन्नाथ पुरी मन्दिर (Jagannath Puri Temple)
जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra)
जगन्नाथ मन्दिर का इतिहास (History of Jagannath Temple)
भारत एक ऐसा देश जहां बहुत सारे धर्म के लोग रहते हैं। सबका अपना आना धर्म है कोई हिंदू है तो कोई मुस्लिम है तो कोई सिख या इसाई। सबको अपने अपने धर्म से प्रेम है, भावना है। इसी तरह एक मंदिर है जिसका नाम जगन्नाथ मंदिर है। जो कि हिंदुओं का धर्म स्थल है। तो चलिये आज हम सब जगन्नाथ मंदिर के बारे में जानते हैं।
जगन्नाथ पुरी मन्दिर।
जगन्नाथ मंदिर जो कि भगवान कृष्ण जी को समर्पित है।ये मंदिर भारत देश के ओडिशा राज्य में स्थित है। भारत में कुल 4 तीर्थस्थल (चार धाम) हैं जिनमे से एक जगन्नाथ मंदिर भी है। यह मंदिर एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध तीर्थस्थल में से एक है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की पूजा-अर्चना के लिए प्रसिद्ध है। जगन्नाथ पुरी का मंदिर अपनी संस्कृति, पूजा, अपने वास्तुकला, भावना, और एक धार्मिक स्थल के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
जगन्नाथ मन्दिर का इतिहास।
जगन्नाथ ( कृष्णा भगवान ) मंदिर भारत देश के ओडिशा राज्य में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। इस मन्दिर को बनाने मे 2 राजाओ ने योगदान दिया था। ऐसा कहा जाता है कि राजा आनंगभिम देव ने इस मन्दिर की नींव रखी थी और इसके निर्माण कार्य को मुख्य रूप से राजा चोडगंबा द्वारा पूरा किया गया था। इस मन्दिर को बनाने का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण), उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा और भक्ति के लिए स्थापित करना था। मन्दिर में भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण), के साथ साथ उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा की भी पूजा की जाती है। पहले के लोगो का ये कहना है कि ये मंदिर जगन्नाथ मंदिर का निर्माण मूल रूप से तीन मुख्य मंदिरों से जुड़ा हुआ है - जगन्नाथ मंदिर, बालभद्र मंदिर और सुभद्रा मंदिर।
जगन्नाथ रथयात्रा।
जगन्नाथ रथयात्रा पुरी में होने वाला एक बहुत पारंपरिक त्योहार है।इस त्योहार में लोगो द्वारा भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को उनके मंदिर से रथ पर स्थानांतरित किया जाता है। यह त्योहार भारत के पुरी में मनाया जाता है। इस रथ यात्रा के प्रारंभ में जगन्नाथ (भगवान कृष्ण) जी को वस्त्र, मुख में चंदन लगाना, और उन्हें आकार्षक आभूषणों से तैयार किया जाता है और उसके बाद उन्हें रथ में स्थापित किया जाता है। जगन्नाथ जी को रथ पर स्थापित करने के बाद वहा आए लोगो, भक्तों के द्वारा उस रथ को अपने हाथों से खींचा जाता है और पूरे शहर, रास्ते में यात्रा कराई जाती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिए भक्तो की बहुत बड़ी भीड़ आती है जिसकी वजह से भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करना नामुमकिन सा हो जाता है।
जगन्नाथ मन्दिर की कथा।
वैसे तो जगन्नाथ मंदिर की बहुत सी कथाएं हैं उन कथाओ में से आज मैं आपको एक कथा के बारे में आपको बताता हूं।
भक्तो के द्वारा ऐसा मानना है कि कहा जाता है कि एक समय परमात्मा विष्णु अपने स्वयंभू विग्रह के रूप में जगन्नाथ बनकर पृथ्वी पर आते हैं। जब जगन्नाथ जी पृथ्वी पर भ्रम के लिए आते हैं तो उन्होंने महाराज इंद्रद्युम्न नामक एक राजा ने एक स्वप्न में यह बताया कि वह अद्वितीय जगन्नाथ मूर्ति का प्रतिष्ठान करे। महाराज इंद्रद्युम्न नामक एक राजा ने अपने स्वप्न में जगन्नाथ जी को देखने के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया और समुंद्र के तट पर भगवान जगन्नाथ जी को विराजमान किए।
जगन्नाथ मन्दिर की पूजा प्रथाएँ।
जगन्नाथ का ये मंदिर अपने विभिन्न प्रकार के पूजा और अर्चना के लिए जाना जाता है। यह इस मंदिर में बहुत सारी पूजा की प्रथा है और यही चीज इस मंदिर को दूसरे मंदिरों से अलग बनाता है। नीचे पूजा की कुछ प्रथा के बारे में बताया गया है।
1 :- आरती।
कोई भी पूजा हो या कोई सा भी मंदिर हो वहा पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तक वहा आरती पूरी ना हो। उसी तरह पुरी के इस जगन्नाथ मंदिर में भी रोजाना तीन बार आरती आयोजित की जाती है। इसमें भगवान जगन्नाथ को तिलक लगाया जाता है और उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त की जाती है।
2 :- पांचामृत महास्नान।
हर मंदिर में भगवान को अलग अलग रूपों से स्नान किया जाता है ठीक उसी तरह पूरी के जगन्नाथ मंदिर में भी भगवान जगन्नाथ जी की पूजा करने से पहले भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को पांच प्रकार के मध्य से निर्मित महास्नान कराया जाता है। इसमें दूध, दही, घी, मधु और शर्करा का उपयोग होता है।
3 :- भोग।
मंदिर में जब हर प्रकार की पूजा होती है तो उसके बाद भगवान जगन्नाथ जी को प्रसाद का भोग लगाया जाता है जो कि पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिसमें भगवान के लिए खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं। एक बार भगवान जगन्नाथ जी को प्रसाद का भोग लग जाता है तो यह भोग बाहरी भोग और महाप्रसाद के रूप में बांटा जाता है, जिसे श्रद्धालुओं को खाने का अवसर मिलता है।
जगन्नाथ मंदिर का प्रभाव।
मंदिर कोई सा भी हो उसका प्रभाव और सकारात्मकता लोगो को अपने तरफ आकर्षित कार्ति ही है। जगन्नाथ मंदिर अपने धार्मिक और संस्कृत महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह कुछ प्रभाव दिए गए है जिसकी वजह से लोगो को आत्म संतुष्टि प्राप्त होती है।
1 :- आध्यात्मिक प्रभाव।
भक्तों के द्वार इस मंदिर में बहुत बड़ी भीड़ लगती है इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि जगन्नाथ मन्दिर में पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन लोगों को आध्यात्मिकता के आस्वादन का अवसर प्रदान करता है। श्रद्धालु यहां आकर अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं, ध्यान में लगते हैं और ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को स्थापित करते हैं। यह पूजा करने और भगवान जगन्नाथ जी के आदेश करने से भक्तो को आत्म संतुष्टि प्राप्त होती है।
2 :- पर्यटन प्रभाव।
जगन्नाथ जी का ये मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो लोगो को, भक्तों को अपनी तरफ लुभाता है। जगन्नाथ मन्दिर का निर्माण ओड़िशा राज्य के पुरी में हुआ है जो कि प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह हर साल लाखों आगंतुक वार्षिक रूप से इस मंदिर की दर्शन करने आते हैं। यह पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देता है, स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है और पर्यटन से जुड़े स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
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DeleteNice
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